क्या हकदार को मिल पायेगा सवर्ण आरक्षण का लाभ

राजीव शर्मा
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आजादी मिलने के बाद एक और आजादी के लिए संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया था। आरक्षण का प्रावधान समाज के पिछडे तबकों को सामाजिक रूप से बराबरी का दर्जा देने के लिए किया गया। मगर आज असली गरीब और गरीब दिखाई देता है। इन समाजों के जागरूक और दबंग लोगों ने उसका राजनैतिक,नौकरियों के क्षेत्र में और अन्य सरकारी योजनाओं के रूप में जमकर फायदा उठाया है। इस बात के गवाह आज के वो हालात है जो इन समाजों की शैक्षिक और भौतिक दशा को दर्शाते है।

ऐसे में एक बार फिर राजस्थान में आर्थिक आधार पर गरीब सवर्णों को आरक्षण की बांटी जा रही रेबडियों और उनके देने के लिए तय किये गये मापदण्डों को देखकर ये सवाल फिर पैदा हो रहा है कि क्या इसका लाभ इसके वास्तविक हकदारों को देने की मंशा है भी या नहीं । क्या इसके वास्तविक हकदारों को इसका लाभ मिल पायेगा।
सवर्ण गरीब के आरक्षण के लिए निर्धारित किये गये प्रावधानों ने प्रदेश में लोगों के बीच अफरा तफरी मचा दी है। इसके अंतर्गत बीपीएल परिवारों के अलावा ढाई लाख रूपये की बार्षिक आय तक को शामिल किया गया है। इससे एक ओर सवर्ण बीपीएल कार्डधारियों के बीच खुशी की लहर दौड गई है,तो वो लोग परेशान है जो बीपीएल की सूची में शामिल नहीं है। सबसे अधिक बेचैनी उन वास्तविक गरीबों में दिखाई पड रही है जो बीपीएल की श्रेणी के काबिल होते हुये भी उसमें शामिल नहीं हैं। ऐसे में वो लोग और भी अधिक प्रसन्न है जो जानते है कि आय प्रमाण पत्र बनबा लेना उनके लिए कितना आसान काम है।

राजस्थान में गुर्जरों को अपने 70 सपूतों के बलिदान के बाद 5 प्रतिशत विशेष कोटे का आरक्षण बडी ही मुश्किल से मिल गया है। राजनीति की चैसर में समझौते की टेबिल पर जून 2008 में भाजपा सरकार ने प्रदेश में गरीब सवर्ण जातियों को भी 14 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर दिया। सवर्ण गरीबों को उस समय चुनावी फायदे के लिए भाजपा ने इस आरक्षण को देनी की घोषणा कर दी थी। राजनीति के दाँव पेचों में उलझा ये आरक्षण का मुददा जुलाई 2009 में जाकर कहीं सुलझ पाया है। कांग्रेस की माने तो मई 2003 में उसने ही सबसे पहले गरीब सवर्णो को आरक्षण देने की पहल कर दी थी। आरक्षण बिल पर राज्यपाल के हस्ताक्षर हो जाने के बाद आरक्षण दिये जाने के मापदण्ड तय करने के लिए प्रदेश की मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमैटी का गठन किया गया। कमैटी ने एक महीने में अपनी रिपोर्ट पेश कर दी । उसके बाद मंत्रीमंडल ने आरक्षण को अपनी मंजूरी दे दी हैं। अब प्रदेश में गुर्जरों को 5 प्रतिशत और सवर्ण गरीबों के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू होने की औपचारिक तैयारी पूर्ण कर ली गई है।

केन्द्र और राज्यों के बीच गरीबी रेखा के मापदण्ड, उनकी संख्या हमेशा से ही विवादित रही है। हाँल ही में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने गरीबी रेखा के नीचे होने और न होने के लिए कुछ मापदण्ड घोषित किये है । जिनके अनुसार 1. आपकी आय यदि 5000 मासिक से अधिक है। 2. आप कृषि यंत्र या दुपहिया वाहन के मालिक हैं। 3. 1100 वर्ग मीटर के पक्के मकान में रहने वाले। ऐसे लोगों को गरीबी रेखा के नीचे नहीं माना जा सकता है। राजस्थान प्रदेश के वर्तमान बीपीएल सदस्यों की अगर बात की जाये तो ऐसा लगता है कि आने वाले 50 बर्षो में भी इस प्रदेश में खुशहाली का आना बडा मुश्किल काम है। प्रदेश के गाँव और कस्वों की आधी से अधिक आबादी बीपीएल में शामिल है। जिनमें किस प्रकार के लोग भी शामिल है उनकी बानगी कुछ इस प्रकार है। 1 जो जनप्रतिनिधि है। जिनके बडे बडे कारोबार चल रहे है। व्यापारी वर्ग के लोग। सरकारी कर्मचारियों के बच्चे,या फिर वो लोग जिनके पास वोट का एक बडा समूह नियंत्रण में है। गाँव कस्वों में दबंग होना तो बीपीएल का एक प्रकार से लायसेंस ही है।

इस संबंध में कुछ घटनायें काबिले गौर है। रेल्वे के कांट्रेक्टर ने सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन रेल्वे को भेजा। आवेदन शुल्क बचाने के चक्कर में उसने अपने भाई के बीपीएल होने का प्रमाण पत्र संलग्न का दिया। ये मामला प्रकाश में तब आया जब रेल्वे ने उस क्षेत्र के उपखंड अधिकारी से ही पूछ लिया कि रेल्वे का इतना बडा ठेकेदार रहे व्यक्ति आखिर बीपीएल कैसे हो गया। कागज की अग्रिम कार्यवाही में क्या हुआ ये नहीं पता लेकिन ठेकेदार महोदय की हालत उन दिनों देखेने लायक हुआ करती थी। भरतपुर जिले के एक गाँव की 80 प्रतिशत आवादी जो सरपंच की जाति से थी बीपीएल में शामिल कर दी गई । गाँव के ही एक मामले को लेकर जब तनाव पैदा हुआ तो दूसरी जाति के लोगों ने जिलाधिकारी के यहाँ इस आशय की शिकायत कर उसका पीछा करना आरम्भ कर दिया। शिकायत की जाँच में पहुँचे कलक्टर को मौका मुआयना देखने के बाद सभी की बीपीएल सदस्यता रदद करनी पडी। इतना ही नहीं एक टैक्टर की ऐजन्सी के मालिक जो लगभग 50 रूपये वार्षिक का आयकर रिटर्न भरते है बीपीएल में शामिल है।

ये तो कुछ नजीर है जिनसे ये समझ में आता है कि बीपीएल की पहचान प्रदेश में कितनी साफ और बेमानी है। सरकार ने सवर्ण आरक्षण में बीपीएल को शामिल कर किसे फायदा पहुँचाया है समझने में कठिनाई नहीं होनी चाहिये। क्योंकि अधिकांश असली हकदार तो बीपीएल में शामिल ही नहीं है। बीपीएल के अलावा सरकार ने 2,50 लाख की बार्षिक आय को भी गरीबी रेखा के अर्न्र्तगत माना है। ऐसे में आय प्रमाण पत्र बन जाने की प्रक्रिया को भी समझ लेना भी जरूरी है। इसके लिए 5 रूपये के तीन सरकारी कागज आते है। जिन पर आवेदक अपनी मर्जी से अपनी आय संबंधी जानकारी भरता है। उसके बाद हल्का पटवारी अधिकतम 50 रूपये के सुविधा शुल्क पर अपनी रिपोर्ट बडी ही आसानी से रास्ते चलते कर देता है। पटवारी की रिपोर्ट, अनुशंषा के बाद तहसीलदार के बाबू की जेब गर्म करने के बाद एक घण्टे के बाद आपके द्वारा दर्शायी गई आय का प्रमाण पत्र आपके हाथों में आ जाता है।

अब ये सोचना जरूरी है कि सवर्ण गरीब के 14 प्रतिशत आरक्षण का फायदा किसे होने जा रहा है। क्या वास्तविक हकदार जो हमेशा से वचित है उन्हें इस आरक्षण का लाभ मिल पायेगा। गरीबी रेखा के नीचे वालों के लिए बनने वाले इंदिरा आवास के मकान भी जहाँ मकान वालों के ही बन रहे है। और गरीब अपनी ही झोंपडी की सुरक्षा को लेकर बार बार चिंतित रहत है। क्या समाज की व्यवस्था को घुन की तरह खाने वाले ये भेडिये उस वास्तविक हकदार तक इस आरक्षण के लाभ को पहुँचने देगें जिसमें सरकारी सेवाओं में जाने का लाभ छुपा है। असंभव लगता है क्योंकि जो लोग बीपीएल के राशन,बिजली के मुफत कनक्शन तक को हडपने से बाज नहीं आ रहे गरीब को आरक्षण का लाभ कैसे हो जाने देगें। ऐसे सरकारी प्रयासों को भी साफ नीयत का मानना ठीक नहीं है। जो हो रहा है सबको पता है मगर कहे कौन किससे । बिल्ली के गले में घण्टी कौन बाँधे। इतना सच है कि अगर बिल्ली से ऐसे ही डरते रहे तो ‘‘ श्वानों को मिलता दूध यहाँ बच्चे भूखे चिल्लाते है,माँ की छाती से लिपट पो जाडे की रात बिताते है’’ इस स्थिति से पार पाना कभी भी संभव नहीं हो पायेगा। गरीबी मिटाओ,उन्मूलन के नाम पर अब तक सरकारों ने हजारों योजनाओं का क्रियांवयन कर दिया होगा । तो क्या कारण है कि गरीब मिट रहे है गरीबी नहीं । कहीं ये ही तो नहीं।

(राजीव शर्मा राजस्थान में रहकर मुक्त पत्रकारिता कर रहे हैं.इससे पूर्व कइ अखवारों के लिए रिपोटिंग कर चुके हें। राजनीति के अलावा पानी-पर्यावरण के मुद्दे पर संवेदनशील रिपोर्टिंग के लिए प्रयासरत राजीव शर्मा को आप s.rajeevsharma@yahoo.com पर संपर्क कर सकते हैं.)

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