जामिया में मुस्लिम आरक्षण से पसमांदा तबक़ा नाखुश
मोहम्मद आसिफ, संवाददाता, सलाम इंडिया न्यूज़
देश का पहला केन्द्रीय मुस्लिम अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने इसी सत्र से मुस्लिम आरक्षण लागू करने का फ़ैसला किया है। यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार प्रो. एस एम साजिद की ओर से जारी जानकारी के मुताबिक़ जामिया में आने वाले सत्र 2011-12 से ही मुस्लिम आरक्षण लागू कर दिया गया है। ग़ौरतलब है कि 22 फरवरी 2011 को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान आयोग ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया को मुस्लिम अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा दिया था तभी से यह अटकलें शुरू हो गई थी कि मुस्लिम आरक्षण किस सत्र से लागू होगा?मंगलवार को इन अटकलों पर विराम लग गया जब यूनिवर्सिटी ने सत्र 2011-12 से मुस्लिम आरक्षण लागू करने का फैसला किया।
मुस्लिम आरक्षण के तहत अब 50 फीसदी सीटें मुस्लिमों छात्रों के लिए आरक्षित हो जाएंगी तथा बची अन्य 50 फीसदी सीटें सामान्य छात्रों के लिए होंगी। मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षित 50 फीसदी सीटों में से 30 फीसदी सीटें सामान्य मुस्लिमों के लिए, 10 फीसदी सीटें मुस्लिम छात्राओं के लिए तथा बची 10 फीसदी सीटों पर अन्य पिछड़ी जाति, अनुसूचित जनजाति के मुस्लिमों का हक़ होगा। वही दूसरी तरफ सामान्य श्रेणी की 50 फीसदी सीटों में से 5 फीसदी जामिया स्कूल को कोटा दिया गया है और 3 फीसदी कोटा विकलांगों को दिया गया है। अल्पसंख्यक दर्जा मिलने के बाद यूनिवर्सिटी में जामिया स्कूल के छात्रों का कोट 25 फीसदी घटा कर 5 फीसदी कर दिया गया है।
यूनिवर्सिटी द्वारा मुस्लिम आरक्षण इसी सत्र से लागू किये जाने के फ़ैसले पर जामिया से जुड़े मुस्लिम छात्रों और शिक्षकों में खुशी की लहर दौड़ गई है। जामिया टीचर्स एसोसिएशन के सचिव डा. रिज़वान क़ैसर ने इस फ़ैसले स्वागत करते हुए कहा कि शुरूआती दिक़्क़तों से लग रहा था कि मुस्लिम आरक्षण इस सत्र से लागू नहीं हो पाएगा। पर जामिया प्रशासन की मेहनत रंग लाई। जामिया ओल्ड ब्वायज़ एसोसिएशन के अध्यक्ष जावेद आलम ने जामिया प्रशासन के इस फैसले को छात्रों की भलाई में उठाया गया बेहतर कदम बताया।
लेकिन पसमांदा मुस्लिम संगठन इस फ़ैसले से ख़ुश नहीं हैं। उनका कहना है कि मुस्लिम समाज में 85 फ़ीसदी आबादी वाले पिछड़े मुसलमानों के 10 फ़ीसदी आरक्षण और 15 फ़ीसदी अगड़े मुसलमानों को 30 फ़ीसदी कोटा देने से साफ़ हो गया है कि जामिया प्रशासन सिर्फ़ अगड़े मुसलमानों के हक़ मे सोच रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पसमांदा आंदोलन से जुड़े पसमांदा फ़्रंट के राष्ट्रीय संयोजक शमीम पसमांदा ने सलाम इंडिया हुई बातचीत में कहा, “ मुसलमानों में अशराफ़िया तबक़ा कभी पसमांदा मुसलमानों के बारे मे नहीं सोचता। ये लोग सरकार से मुसलमानों के नाम पर क़ौम का हिस्सा लेना तो जानते। लेकिन पसमांदा मुसलमानों को उनका हिस्सा देना नहीं जानते। जामिया में पसमांदा मुसलमानों को कम से कम 27 फ़ीसदी हिस्सा तो मिलना चाहिए।”
पसमांदा विषय पर अंतर-राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त रिसर्च स्कॉलर ख़ालिद अनीस अंसारी ने भी इस फ़ैसेल पर अंसतोष जताया। उन्होंने कहा, “ पसमांदा मुसलमानों के दस फ़ीसदी हिस्से में अनुसबचित जनजाति के मुसलमानो को जोड़ना एकदम ग़लत है। केंद्रीय स्तर पर पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फ़ीसदी आरक्षण है। लिहाज़ा जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पचास फ़ीसदी मुस्लिम आरक्षण में कम से कम 14 फ़ीसदी हिस्सा पसमांदा मुसलमनों को मिले और अनुसूचित जनजाति के मुसलमानों का कोटा अलग से हो।” बहरहाल जामिया में मुस्लिम आरक्षण का फ़ैसला शुरुआत में विवादों में घिर गया है। पसमांदा मुसलमानों की ज़्यादा कोटे का दावेदारी भविष्य में जामिया प्रशासन के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं।
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