नीतीश का नया बिहार, मुसलमानों का नरसंहार


नीतीश का नया बिहार, पसमांदा मुसलमानों का नरसंहार


मोहम्मद आसिफ़, संवाददाता, सलाम इंडिया न्यूज़


बिहार के अररिया ज़िले के फारबिसगंज में पसमांदा मुसलमानों पर पुलिसिया क़हर का मामला अब नीतीश कुमार सरकार के गले की फांस बन सकता है। ऑल इंडिया पसमादा मुस्लिम महाज़ के एक प्रतिनिधिमनंडल ने मौक़ा-ए-वारदात का दौरा करके पूरी घटना की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में घटना के चश्मदीद स्थानीय लोगों के बयानों कों क़लम बंद किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस सड़क को बंद करने पर वहां के लोगों का ग़ुस्सा फूटा वो गांव के लोगों ने अपनी ज़मीन दान करके और अपने श्रमदान से बनायी थी। सड़क के निर्माण में ज़िला पंचायत का भी पैसा लगा था। ऐसे में को भी सड़क बंद कर गांव का रास्ता बंद करने का हक़ किसी को नहीं पहुंचता।


प्रतिनिधि मंडल में पसमांदा सामाजिक कार्यकर्ता नूर हसन आज़ाद, जदयू विधायक दाऊद अंसारी, हिशाम अंसारी, हसनैन अंसारी और राज्य के में 15 सूत्री कार्यक्रम के ध्यक्ष शरीफ़ क़ुरैशी शामिल थे। घटनास्थल के दौरे के बाद प्रतिनिधिमंडल के सदस्य नूर हसन आज़ाद न सलाम इंडिया से बातचीत में कहा गुजरात में वहां के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों का खुलेआम क़त्लेआम कराया और यहां उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने। दोनों का अंदाज़ भले ही अलग हो मगर करतूत एक जैसी है। उन्होंने कहा कि अपने हक़ के लिए लड़ रहे ग़रीब पसमांदा मुसलमानों की भीड़ पर ज़ुल्म ढाने में पुलिस ने कोई क़सर नहीं छोड़ी। निहत्थे लोगों की भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने तो कोई चेतावनी ही दी, न पानी की बौछार छोड़ी न ही लाठी चार्ज किया। इसके उलट सारे क़ायदे क़ानून ताक पर रख कर पुलिस ने सीधे गोली चलाई।

रिपोर्ट में ज़िले के डीए और एसपी के साथ बीजेपी के विधान पार्षद अशोक अग्रवाल और उनके बेटे सौरभ अग्रवाल को कटघरे में खड़ा करके उनके खिलाफ़ धारा 302 के तहत मुक़दमा चलाने की मांग की गयी है। इस प्रति निधिमंडल ने पुलिस की गोली से मारे गए लोगों के परिजनों को फ़ौरन 10-10 लाख रुपए और घायलों को 5-5 लाख रुपए का मुआवज़ा देना की मींग की है। प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री नीतीश कतुमार से ख़ुद एक बार घटना स्थल का दौरा करने की मांग की है।

जल्द ही ये रिपोर्ट राज्य सरकार, केंद्रीय गृहमंत्रालय और मानवाधिकार आयोग को सौंपी जाएगी। दिल्ली में पसमांदा आंदोलन से जुड़े लोग भी मानवाधिकार आयोग का दरवाज़ा खटखटाने जा रहे हैं। मानावधिकार आयोग के सामने इस मामले के आने के बाद नीतीश सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है। दर असल विहार के फ़ारबिसगंज में जो कुछ हुआ, उसने भारतीय पुलिस प्रशासन के सेक्यूलर होने के दावे की एक बार फिर पोल खोल दी है3 जून 2011 को फारबिसगंज के पसमांदा मुसलमानों पर बिहार पुलिस नें ज़ुल्म की नईंदांस्ता लिख दी। उनका क़सूर सिर्फ इतना था कि वो लोग अपने हक़ के लिए आवाज़ बुलंद करने की कोशिश कर रहे थे, या उनका क़सूर ये भी हो सकता है कि वो सभी मुसलमान थे। मुसलमानो मे भी वो विकास की सीढ़ी के सबसे निचले पायदान पर खड़े पसमांदा मुसलमान थे।


नीतीश कुमार ने बिहार को विकसित करने के नाम पर गद्दी हासिल की है। शायद यही वजह है कि वो विकास के लिए ग़रीब मुसलमानों की लाशों का ढेर लगाने से भी नहीं चूक रहें। विकास के नशे में चूर बिहार सरकार इतनी मदहोश हो गई है कि उसने फारबिसगंज में विकास के ढांचे की नींव पसमांदा मुसलमानों की लाशों से भर दीये वो ही पसमांदा मुसलमान हैं जिनके वोट की बदौलत नीतीश कुमार दूरसी बार सत्ता का शीर्ष पर पहुंचे हैं।


आइए जानते हैं कि ये पूरी घटना क्या है। बिहार का ज़िला अररिया दो हिस्सों में बंटा है। एक हिस्सा ख़ास अररिया तो दूसरा फारबिसगंज कहलाता है। फारबिसगंज में एक गांव है भजनपुर और उससे सटा एक और गांव है रामपुरा। इन दोनों गांव के ज़्यादातर निवासी मुसलमान हैं। भजनपुर गांव से फारबिसगंज बाजार जाने के लिए 1962 से पहले 8 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता था। भजनपुर के तत्कालीन मुखिया नूर अंसारी की पहल से ये रास्ता बना जिससे भजनपुर वालों को फारबिसगंज पहुंचने के लिए एक किलोमीटर ही चलना पड़ता है। इस रास्ते को बनाने के लिए गांव वालों ने अपनी ज़मीन दान की, खुद की मेहनत की और अपना पैसा भी लगाया था।


1984-85 में बिहार सरकार ने इन दोनों गांवों की सीमा में लगभग 150 एकड़ ज़मीन को उद्योग के मक़सद से अधिग्रहण किया था। उस वक़्त बिहार सरकार ने गांव वालों से वादा किया था कि ये रास्ता बंद नहीं होगा। अब सरकार अपने वादे से मुकर गई। एक साल पहले नीतीश सरकार ने यह ज़मीन देहरादून की औरो सुन्दरम इंटरनेशनल प्राइवेट नाम की कंपनी को स्टार्च फैक्ट्री लगाने को दे दी। कंपनी वाले स्थानीय प्रशासन से सड़क बंद करके ज़मीन खाली कराने का दबाव बनाने लगे। लेकिन जब पुलिस और अन्य पदाधिकारी ज़मीन खाली कराने में नाकाम हुए तो 30 मई को बिहार के भाजपाई उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी फारबिसगंज पहुंचे और स्थानीय प्रशासन को किसी क़ीमत पर ज़मीन खाली कराने का हिटलरी फ़रमान जारी कर दिया। 1 जून को प्रशासन ने 150 फोर्स गांव में तैनात कर दी। फिर क्या था,ऐसा लगा जैसे स्थानीय प्रशासन को ग़रीब मुसलमानों पर क़यामत बरपा करने का बहाना मिल गया। फिर शुरु हुआ बिहार सरकार का ऐसाज़ुल्म जिसने ब्रिटिश जनरल डायर और गुजरात दंगों की याद दिला दी। पुलिस की उस निर्मम कारवाई में 5 बेक़सूर पसमांदा मुसलमानों की जान चली गई और 15 लोग बूरी तरह ज़ख्मी हैं।


इन बेगुनाहों के क़त्ल करने का जो तरीक़ा पुलिस ने अपनाया उसे सुन कर रुह कांप जाए। पुलिस की गोलीबारी में जिन 5मुसलमानों की मौत हुई उनमें एक 7 महीने का नवजात भी था। जिसका नाम नौशाद था। नौशाद को बचाने के लिए उसकी मां उसे गोद में छुपा कर भाग रही थी कि एक गोली नौशाद को लगी और एक नौशाद की मां की जांघ में। मासूम बच्चे ने दम तोड़ दिया जबकि उसकी मां घायल हो कर गिर गई।


इसी तरह एक 18 साल के मुस्तफ़ा अंसारी को पुलिस ने चार गोलियां से भून डाला। लेकिन वो मरा नहीं था। एक पुलिस वाला ज़ख्मी मुस्तफ़ा अंसारी के उपर कूद-कूद कर अपनी मर्दानगी दिखाता रहा। बाद में मुस्तफ़ा अंसारी को मुर्दा समझ कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। वहां डाक्टरों को पता चला कि उसके जिस्म में जान ब़ाकी है। पर तब तक देर हो चुकी थी और मुस्तफ़ा अंसारी अस्पताल में दम तोड़ दिया। इसी तरह एक 6 महीने की गर्भवती महिला को पुलिस ने 6 गोलियां मारी। जिससे उसके साथ-साथ दुनिया में आने से पहले ही गर्भ में पल रहे शिशु की भी मौत हो गई। कुल मिला कर बिहार पुलिस ने मौत का जो खेल फारबिसगंज में खेला उससे एक बात साफ़ नजर आती है कि देश के दबे कुचले मुसलमानों को अपने हक़ मांगने के बदले मौत मिलेगी। स्थानीय लोगों का कहना है किगांव के पास से गुज़र रहे एन एच-57 के पुल पर खड़े हो कर पुलिस वालों ने गांव पर लगभग 1000 राउंड फायरिंग की। साथ ही एमएलसी अशोक अग्रवाल के बेटे सौरभ अग्रवाल ने लाइसेंसी बंदूक और निजी गार्डों से भी फायरिंग करवाई।


इस पूरे क़त्लेआम का दूसरा पहलू ये भी है कि भाजपा की मुस्लिम दुश्मनी रह-रहकर सामने आ जाती है। यह ज़मीन बिहार सरकार ने जिसके नाम पर आवंटित किया है वो भाजपा विधान परिषद अशोक अग्रवाल का बेटा है। अशोक अग्रवाल पर हत्या और स्मगलिंग का मामला हाईकोर्ट में चल रहा है और यह क़त्लेआम जिसके इशारे पर हुआ है वो भी भाजपाई उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी हैं। इससे पहले इसी सुशील कुमार मोदी ने नोएडा के भट्टा परसौल गांव के ज़मीन अधिग्रहण मामले में उत्तर प्रदेश सरकार की कड़ी आलोचना की थी। यानि फारबिसगंज में मुसलमान नहीं होते तो शायद वहां इस तरह का क़त्लेआम नही होता। बिहार सरकार ने मामले की न्यायिक जांच का एलान तो कर दिया है। लेकिन इससे वहां के लोगों को इंसाफ मिलने की उम्मीद कम ही है।

http://salaamindialive.tv/news.php?news_id=297

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