आखिर पसमांदा अधिकार महाधरना क्यों?


शोषित समाज दल एवं अर्जक सिविल सोसाइटी की ओर से
संयुक्त “पसमांदा अधिकार महाधरना” का आयोजन 

दिनांक: 26 नवम्बर, 2011, शनिवार, 11 AM-04 PM
स्थान: झूलेलाल पार्क, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

उत्तर प्रदेश के अर्जक समाज [दलित-महादलित-पिछड़ा-अति पिछड़ा(पसमांदा समेत)-आदिवासी]  से आने वाले मतदाताओं के नाम  

आज जब बसपा, सपा और कांग्रेस एक सुर में सभी मुसलमानों को आरक्षण देने की बात कर रहे हैं तो बाईबल की एक पंक्ति सहसा ही याद आती है: भगवन, उन्हें माफ कर दो, वे नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं? ‘भगवन’ उन्हें माफ कर सकता है किन्तु अर्जक अवाम जिनके वोट से इनकी राजनीति की गाड़ी चलती है क्या इन्हें माफ कर देंगे जब इन्हें पता चलेगा कि सभी मुस्लिमों को आरक्षण इनके लिए किस तरह घाटा का सौदा है. और यदि किसी तरह गुमराह होकर जनता इन्हें अगले चुनाव में सत्ता सौंप भी देती है तो क्या इतिहास इन्हें बख्स देगा? सपा और बसपा तो सभी मुसलमानों को आरक्षण देने की बात कर रहे हैं किन्तु कांग्रेस, जिसका ‘बांटो और राज करो’ में पुराना प्रशिक्षण है, सभी मुसलमानों को आरक्षण के साथ एक और विकल्प पर विचार कर रही है जो यह है कि सत्ताईस प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के अंदर ओबीसी मुसलमानों को अलग से छः, सात या आठ प्रतिशत आरक्षण देने का. ये दोनों विकल्प किस तरह सामाजिक न्याय, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए घातक है इसे आप तक पहुँचाने के लिए शोषित समाज दल यह पर्चा प्रस्तुत कर रहा है.

मुस्लिम समुदाय की सभी पिछड़ी जातियाँ राज्य में पिछड़ी जातियों की सूची और केन्द्र में ओबीसी लिस्ट में शामिल हैं. ऐसे में सहज सवाल उठता है कि सभी मुसलमानों को आरक्षण का मुद्दा क्यों और किसके लिए उठ रहा है? जिस तरह हिंदू समाज में सवर्ण जातियाँ आरक्षण की लिस्ट से बाहर है उसी तरह मुस्लिम समाज की सवर्ण जातियाँ भी आरक्षण की श्रेणी से बाहर है. इसलिए सभी मुसलमानों को आरक्षण देने का अर्थ होता है सवर्ण मुसलमानों को आरक्षण देना. वस्तुतः, सभी मुसलमानों को आरक्षण सवर्ण मुसलमानों को पिछले दरवाज़े से आरक्षण देने का एक शातिराना चाल है.

क्या सवर्ण मुसलमान आरक्षण दिए जाने के लायक हैं? यदि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग और मंडल आयोग ने सवर्ण या अशराफ़ मुसलमानों को आरक्षण की लिस्ट से बाहर रखा तो इसका कोई तो वजह रहा होगा! हमारे देश में शारीरिक श्रम करने वाली पिछड़ी जातियों को आरक्षण इसलिए दिया गया है कि पूरा का पूरा पिछड़ा जमात सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा हुआ है और सरकारी नौकरियों और शिक्षा में उनकी भागीदारी उनकी जनसंख्या के अनुपात में बहुत कम है. ऊंची जातियों की स्थिति इसके उलट होने के चलते उन्हें आरक्षण की श्रेणी से बाहर रखा गया है. जिस तरह पिछड़ी जातियों से तात्पर्य हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों की पिछड़ी जातियों से है, उसी तरह अगड़ी या ऊंची जातियों से तात्पर्य हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों की ऊंची जातियों से है.

सभी मुसलमानों को आरक्षण पिछड़े मुसलमानों के हितों पर जितना बड़ा चोट है, उससे भी बड़ा चोट टेढ़े तरीके से सम्पूर्ण आरक्षण नीति पर है जो कि सामाजिक न्याय और परिवर्तन के संघर्ष का आधार है. कुलीनवंशी मुसलमान आरक्षण का सारा लाभ उठा ले जायेंगे और पिछड़ी जाति के हमारे मुसलमान भाई और बहन जिन्होंने अपने को पसमांदा नाम दिया है हाथ मलते रह जायेंगे. जब अभिजात मुसलमान आरक्षण की श्रेणी में आयेंगे तो अभिजात हिंदुओं को भी आरक्षण मिलने का रास्ता खुलेगा, तब आरक्षण नीति की क्या दुर्गति होगी यह सहज कल्पना की जा सकती है.  

ओबीसी मुसलमानों को कुल सत्ताईस प्रतिशत ओबीसी आरक्षण में अलग से आरक्षण की बात करना भी इसी तरह का कुचक्र है. यह उनकी भलाई नहीं बल्कि उनको नुकसान पहुँचाने के लिए किया जा रहा है. मंडल आयोग के लागू होने के बाद पूरे देश भर में सभी धर्मों के मानने वाले पिछड़ों में एकता का निर्माण हुआ है और “दलित पिछड़ा एक समान, हिंदू हो या मुसलमान” का नारा बुलंद हो रहा है जो “फूट डालो, राज करो” में विश्वास करने वालों को नहीं पच रहा है. इसके अलावा इनकी एक चाल यह भी है कि पहले ओबीसी मुसलमानों को अलग से आरक्षण दो, फिर अगड़े मुसलमानों को ओबीसी घोषित कर उन्हें आरक्षण की श्रेणी में ले आओ. इसकी एक बानगी बिहार में देखने को मिली है जहाँ अगड़ी मलिक मुस्लिम जाति को पिछड़ी जातियों के लिस्ट में ले आया गया है और इसके लिए अशराफों की ओर से मुख्य मंत्री नीतीश कुमार को धन्यवाद ज्ञापित किया गया और उनसे आग्रह किया गया कि बाकी के तीन अशराफ़ जातियों-शेख, सैयद और पठान- को भी पिछड़ों की लिस्ट में शामिल किया जाए. हम धर्म के आधार पर आरक्षण की श्रेणी में विभाजन का विरोध करते हैं. यह एक सांप्रदायिक सोच है. इससे सांप्रदायिक ताकतों को बाबरी मस्जिद से भी बड़ा मुद्दा मिल जाएगा. सांप्रदायिक दलों के ओबीसी नेताओं के लिए तो यह एक वरदान ही होगा.

मुस्लिम ओबीसी को अलग से आरक्षण देने के स्थान पर हम अति पिछड़ी जातियों (जिनमें हिंदू और मुस्लिम सभी कारीगर जातियाँ आ जायेंगी) को राज्य और केन्द्र दोनों जगह बिहार के कर्पूरी फार्मूला के अनुसार अलग श्रेणी बनाने के पक्ष में हैं. यह मुस्लिम ओबीसी को अलग से आरक्षण देने की खतरनाक नीति का सबसे उत्तम काट है जिसका आधार सामाजिक न्याय के महान नेता कर्पूरी ठाकुर जी ने ही तैयार किया था. इससे सामाजिक न्याय की लड़ाई में एक संतुलन और पिछड़ी-अति पिछड़ी जातियों में और भी ज्यादा एकता की ठोस जमीन तैयार हो पायेगी.

शोषित समाज दल धर्म की एकता की जगह जातियों की एकता (दलित पिछड़ा एक समान, हिंदू हो या मुसलमान) को तरजीह देता है क्यों कि इतिहास ने साबित कर दिया है कि धर्म की एकता के नारे पर इस देश में साम्प्रदायिक एकता को हासिल नहीं किया जा सका है. हम चाहते हैं कि हिंदू और मुस्लिम सवर्ण भी नारा लगाएं-अगड़ा-अगड़ा एक समान, हिंदू हो या मुसलमान. तभी इस देश से सांप्रदायिकता की विदाई और सेक्यूलर मुद्दों पर राजनीति संभव हो सकती है

सभी मुसलमानों को आरक्षण और मुस्लिम ओबीसी को अलग से आरक्षण देने जैसे सामाजिक न्याय, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता विरोधी मुद्दों के खिलाफ जनमानस तैयार करने के लिए शोषित समाज दल ने आगामी 26नवम्बर,2011, शनिवार को दिन के ग्यारह बजे से अपराह्न चार बजे तक लखनऊ के झूलेलाल पार्क में“पसमांदा अधिकार महाधरना” का आयोजन किया है जिसमें ज्यादा से ज्यादा संख्या में भागीदारी के लिए हम आप से अनुरोध करते हैं.  

[Drafted by  Research & Policy Unit, SSD and Released by Akhilesh Katiyar, Working National President, Vinod Maurya, State President and Hashim Pasmanda, Vice President (Uttar Pradesh), SSD; Ph: 91-9455805768]

0 comments

Posts a comment

 
© Indian Dalit Muslims' Voice
Back to top