इस घटना ने साबित किया इस्लाम तो एक है पर मुसलमान नहीं


सात दिसंबर को पूर्वी चंपारण के केसरिया के अल्लाहपुर गांव में जातिवादी दुश्मनी ने फिर सिर उठाया. गांव की पिछड़ी जाति के एक विकलांग अकबर अली पर गांव के ही अगड़ी जाति के दबंग मुसलमानों ने जानलेवा हमला कर दिया.अकबर पर लाठी-डंडों से इतने प्रहार किये गये कि वह अधमरा हो गये.
कहर के शिकार अकबर अली
//इर्शादुल हक//इस्लाम की बुनियाद इसके मसावात( बराबरी) के सिद्धांत पर आधारित है.यही कारण है कि आठवीं शताब्दी में जब यह धर्म भारत की धरती पर पहुंचा, तो इसे तत्कालीन समाज ने गले लगाया. पैगंबर मोहम्मद साहब ने भी अपने खुतबे (प्रवचन)में इस बात पर जोर दिया था कि किसी अरबी को किसी अजमी पर, किसी गोरे को किसी काले पर किसी तरह की बरतरी हासिल नहीं है.
अल्लाह के नजदीक सबसे बड़ा वही है, जिसका किरदार महान हो. ऐसी मिसाल भी है, जब हजरत मोहम्मद साहब ने खुद हजरत बिलाल, जो एक अफ्रीकी नस्ल के काले मुसलमान थे, के पक्ष में ख.डे हो गये थे. उन्हें उस वक्त मुअज्जिन (अजान देनेवाला) बनाया गया था, पर कुछ लोगों को उनकी काली नस्ल को लेकर एतराज था, पर जब पैगंबर साहब ने उनकी काबलियत का उल्लेख किया, तो किसी ने भी बिलाल की मुखालफत नहीं की. भारत में इसलाम के तेजी से फैलने के पीछे यही कारण थे.
लेकिन, स्थितियां बदलने के साथ भले ही इसलाम के उसूल आज भी उसी मजबूती के साथ मौजूद हों, पर मुसलमानों में जातिवाद समय-समय पर सिर उठाता रहता है.
सात दिसंबर को पूर्वी चंपारण के केसरिया के अल्लाहपुर गांव में जातिवादी दुश्मनी ने फिर सिर उठाया. गांव की पिछड़ी जाति के एक विकलांग अकबर अली पर गांव के ही अगड़ी जाति के दबंग मुसलमानों ने जानलेवा हमला कर दिया. अकबर पर लाठी-डंडों से इतने प्रहार किये गये कि वह अधमरा हो गये.उन्हें सड़क के किनारे फेंक दिया गया. अकबर गांव स्तर के पिछड़े समाज के नेता भी हैं.
इस घटना के बाद स्थानीय पुलिस ने गांव के मुखिया सरफराज अहमद के खिलाफ एफआइआर दर्ज की है. मोतिहारी के एसपी गणेश कुमार ने घटना की पुष्टि भी की है. केसरिया का अल्लाहपुर 2007 से ही जातीय संघर्ष का केंद्र बना हुआ है.
अली अनवर ने प्रभावित लोगों से मुलाकात की
6 दिसंबर, 2007 को पिछ.डे मुसलमानों की झोंपड़ियों को जला दिया गया. इस घटना के बाद मैंने उस गांव का दौरा किया था. दरअसल, अल्लाहपुर गांव बिहार के एक आम गांव की तरह ही है, जहां समय के साथ दबे-कुचले लोगों में आर्थिक समृद्धि आयी है. आर्थिक समृद्धि, अपनी प्रकृति के अनुरूप लोगों में स्वाभिमान लाती है. अल्लाहपुर में भी ऐसा ही हुआ. पिछ.डे मुसलमान (जिनमें अंसारी और मंसूरी जाति के लोग हैं) चाकरी छोड़ कर अपना रोजगार करने लगे. उनके रहन- सहन भी सुधार आया. बच्चे स्कूल जाने लगे. यह स्थिति गांव के दबंगों को नहीं भायी. नतीजा हुआ कि पिछले पांच सालों में जातीय द्वेष समय-समय पर अलग-अलग रूपों में सामने आने लगे.
7 सात दिसंबर की घटना को उसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है. राज्यसभा सदस्य और पसमांदा मुस्लिम महाज के रहनुमा अली अनवर एक जांच दल के साथ अल्लाहपुर से लौटे हैं. उनका कहना है कि इस गांव के अगड़ समाज के मुसलमानों का सामंती सोच ही जातीय टकराव का असली कारण है. कुछ बरस पहले इसी गांव के एक पिछडे मुसलमान की शादी में बन रहे खाने में लोगों ने इसलिए मिट्टी डाल दी थी कि उनके यहां दूल्हा मारुति पर सवार हो कर आया था. आज से कोई चार-पांच साल पहले मुसलमानों में जातीय विभेद की एक घटना वैशाली में तब सामने आयी थी, जब एक दर्जी की मैयत को अगड़ी जाति के लोगों ने अपने कब्रिस्तान में दफन करने से मना कर दिया था. हालांकि, प्रशासन के दबाव के बाद उस मैयत को उसी कब्रिस्तान में दफन किया गया था.
जातीय हिंसा वैसे तो किसी भी समाज के माथे पर कलंक है, पर जब ऐसी घटना मुसलिम समाज में घटती है, तो गैर मुसलिम समुदाय के बुद्धिजीवियों को इस पर कुछ ज्यादा ही आश्चजर्य होता है, क्योंकि उन्हें पता है कि जातिवाद की कुप्रथा को समाप्त करना ही इसलाम के बुनियादी उसूलों का हिस्सा है. इसके बावजूद अगर मुसलमानों में ऐसी घटना होती है, तो इसकी जितनी भी भर्त्सना की जाये, कम है.
यह स्टोरी 15 दिसम्बर के प्रभात खबर के पटना एडिशन में भी पढ़ी जा सकती है
Courtesy: http://naukarshahi.in/?p=1981#comment-330

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