दिनांक 3 मार्च 2019 को मोमिन कॉन्फ्रेंस के बारे में लिखने के लिए तो बहुत कुछ है, लेकिन कुछ बाते बहुत से Whatsapp Groups में लोगों की टिप्पणी (Comments) देखने के बाद में अपनी बात यहां पर लिख रहा हूं जिसका मकसद सिर्फ और सिर्फ अपने आप में सुधार और मोमिन कॉन्फ्रेंस को मजबूती प्रदान करना है। इस अपनी व्यक्तिगत राय के द्वारा किसी के भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है और यदि ऐसा होता है तो में खुद जिम्मेदार हूं और इसके लिए शुरू में ही खेद व्यक्त करता हूं।
मोमिन तहरीक, मोमिन स्वतंत्रता सैनानी, मोमिन अंसार समाज सुधारक, मोमिन अंसार उलमा ए इक्राम, मोमिन अंसार तहरीक के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है इसके बावजूद में अपनी बात यहां पर रख रहा हूं। जहां तक मोमिन अंसार तहरीक की बात है जो सन् 1818 या 1820 में शायद बंगाल वर्तमान समय में बांग्लादेश के ढाका, मुर्शीदाबाद आदि में वहां के बुनकर विशेषकर जो कपडा उद्योग से जुडे हुए थे, अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर दी थी और यही कारण है कि 1835 में जनाब सिबगतुल्ला अंसारी एवं उनके साथियों को अंग्रेजों ने फांसी पर चढा दिया था। छोटानागपुर/संथालपरगना (वर्तमान समय झारखंड) में शहीद ए आजम, देश रत्न जनाब शेख भिखारी (02 अक्टूबर 1811 - 08 जनवरी 1858) ने भी अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने की वजह से फांसी दे दी गई। इसी प्रकार जनाब हाजी शरियतुल्ला अंसारी (1781-1840) एवं उनके पुत्र जनाब मो. मोहसिन उर्फ दादुमियां (1819-1863), जनाब डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी, जनाब शौकतुल्ला अंसारी एवं आजादी के तहरीक में, जनाब मौलाना रशीद अहमद गंगोही, जनाब मौलाना अब्दुल हक अंसारी, जनाब मौलाना इमामुद्दीन आदि ने जंगे आजादी में बढ-चढकर भाग लिया और मुल्क को आजादी दिलाई एवं कौम की रहनुमाई की।
इसके अलावा बहुत सारे मोमिन अंसार बिरादरी से संबंध रखने वाले स्वतंत्रता सैनानियों का अता-पता एवं कोई नामलेवा नहीं है ओर न ही इस विषयवस्तु पर कोई संगठित तौर पर, विधिवत रिसर्च कर (तहकीकी कार्रवाई कर) ऐसे तमाम मोमिन अंसारी के सपूतों का पता लगाकर उनको सम्मान देना चाहिए। जो आज दिनांक तक कोई भी इस बावत मान-सम्मान हेतु, ब्यादगार हेतु कोई कार्रवाई की जाना नहीं पाई जा रही है। कभी कभी अस्थानीय परिप्रेक्ष्य में जनाब अब्दुल कययूम अंसारी साहब की जन्मदिवस मनाने की सूचना गाहे-बगाहे मिलती आ रही है। वह भी प्रोग्राम के तौर तरीके को देखने से ऐसा प्रतीत होता है और पता चलता है कि समस्त प्रोग्राम राजनीतिक लाभ लेने हेतु अथवा अपने आप को खुदनुमाई (प्रोत्साहन) किए जाना पता चलता है। यही नहीं इनके अलावा अनेकों स्वतंत्रता संग्राम सैनानी, सामाजिक आंदोलन से जुडे हुए, समाजसुधारक आदि जिन्होंने अंग्रेजों के जुल्म ज्यादती के खिलाफ अपने समाज में प्रचलित कूरितियों के खिलाफ लगातार आवाजें बुलंद की हैं और जिनका कि राष्ट्र निर्माण में एवं समाज के लिए उल्लेखनीय योगदान रहा है जिनके कुछ नाम निम्नानुसार हैं -
1. जनाब पीर मो. मुनीस
2. जनाब मो. अब्दुल मजीद
3. जनाब शेख मो. जहीर उद्दीन
4. जनाब शेख मुर्तजा हसन
5. जनाब मो. निजामुद्दीन एडवोकेट
6. जनाब शफीकुल्ला अंसारी
7. जनाब मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी
8. जनाब बख्त मिया उर्फ बत्तख मियां अंसारी
को इस तरह की कॉन्फ्रेंस/प्रोग्रामों में उनपर रोशनी डालते हुए उन्हें याद करना चाहिए जो इनके नाम फोटोज, पोस्टर्स, बैनर्स, फ्लैक्स आदि पर न के बराबर इस प्रोग्राम में देखने को मिले, बल्कि ऐसा देखने में आया कि अस्थानीय मोमिन कांफ्रेंस के पदाधिकारियों ने अपना ही प्रचार-प्रसार, खुदनुमाइश, इनके फोटो के साथ अपने फोटो लगाकर किया जाना पाया गया। इस प्रकार इनकी शख्सियत दब कर (गौड) रह गई है, इस ओर जितना ध्यान देना चाहिए था, उतना ध्यान नहीं दिया गया।
प्रोग्राम/कॉन्फ्रेंस स्थल पर जो भी पोस्टर्स अथवा बैनर्स लगे थे ऐसा लग रहा था कि व्यक्ति विशेष की खुदनुमाइश और किसी न किसी प्रकार का अपने आप को प्रोत्साहन करने की होड लगी हो और कोई भी व्यक्ति इस तरह के आयोजन से सहज ही अंदाजा लगा सकता है।
यह हमारी मोमिन तहरीक सन् 1900 से 1906 के बीच में कई नामों से कई क्षेत्रों में सरग्रम हो चुकी थी और जंगे आजादी से लेकर आजदी तहरीक में बढचढ कर भाग ले रही थी और मुल्क को आजाद करने में बहुत बडा रोल अदा किया। सन् 1906 में मुस्लिम लीग बनने के बाद इनकी कार्रवाई मुल्क को विभाजन से बचाने के लिए हर जगह जगजाहिर और नुमाया हो चुकी थी।
जैसा की ऊपर जिक्र किया जा चुका है कि मोमिन तहरीक, बुनकर, मोमिन अंसार बिरादरी जो अपने कारनामों (व्यवसाय) के कारण जानी जाती थी भारत के कई क्षेत्रों में काम कर रही थी और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्षरथ थी और पहली आजादी की लडाई 1857 में हर स्तर पर, पहली आजादी की लडाई में बढचढ कर भाग लिया।
यही कारण था कि सर सैयद अहमद खान ने अपनी किताब ''अस्बाब ए बगावते हिंद'' में 1857 की पहली आजादी की लडाई को विद्रोह करार देते हुए पूरी जिम्मेदारी अंसार बिरादरी पर ''जुलाहों के ताने बाने ढीले हो गए थे'' कहकर मढ दिया था। आज अंसारी बिरादरी के कितने वीर सपूतों को स्वतंत्रता संग्राम सैनानी के तौर पर जाना जाता है, और इतिहास के पन्नों में जगह मिली है यह एक विचारणीय प्रश्न है। इस पर मोमिन अंसार बिरादरी को उच्च प्राथमिकता देते हुए कार्रवाई करने की जरूरत है जो आज दिनांक तक कोई भी तहकीकी कार्रवाई नहीं की गई जो बहुत ही दुख की बात है एवं खेद का विषय है।
इतिहास इस बात का गवाह है कि मुस्लिम लीग सन् 1906 में अस्तित्व में आने के बाद, जो पाकिस्तान बनाने के पक्ष में थी वही मोमिन अंसार बिरादरी के समस्त एसोसिएशन/ओरगानाइजेशन दो मुल्की नजरिए के लगातार खिलाफ रही है एवं मोमिन अंसार बिरादरी एवं अन्य मुस्लिम दलित समाज कहीं भी कभी भी इतिहास के पन्नों में पाकिस्तान बनाने का पक्ष नहीं मिलता है और इसका सबूत सन् 1906 से लगातार जो कि मोमिन अंसार के मजदूर समाज के लोग थे उन्होंने विभाजन के खिलाफ जो कार्रवाई की ऐसी कार्रवाई किसी और संगठन द्वारा नहीं की गई। अब ऐसी स्थिति में ऑल इण्डिया मोमिन कॉन्फ्रेंस और इसके साथ-साथ स्टेट मोमिन कॉन्फ्रेंस के पदाधिकारियों को चाहिए की प्रत्येक स्टेट में, बदलते हुए प्रदेश में अपने नुमाया कार्रवाई करे और अपनी बिरादरी को ही नहीं बल्कि समस्त दलित मुस्लिम समाज दबे-कुचले लोगों की, समस्त मुस्लिम समाज की रहनुमाई करे।
समस्त कॉन्फ्रेंस/सम्मेलनों की कार्रवाई को देखते हुए ऐसा महसूस हो रहा था कि मोमिन अंसारी बिरादरी एवं दलित मुस्लिम समाज के समक्ष कोई ठोस एजेण्डा/ भविष्य के लिए कोई एक्शन प्लान नहीं है ऐसी सूरते हाल में राष्ट्रीय मोमिन कॉन्फ्रेंस एवं मोमिन अंसार बिरादरी के दानिश्वर समस्त आवश्यक बिन्दुओं/मुद्दों पर कार्रवाई करने की सोच/प्लान बना सकते हैं, इसके लिए आवश्यक है कि अंसार बिरादरी के पदाधिकारी एवं दानिश्वरों में आपस में तालमेल, सहमति हो।
1. ऐसे समस्त ऑल इंडिया मोमिन कॉन्फ्रेंस के पदाधिकारी एवं स्टेट मोमिन कॉन्फ्रेंस के पदाधिकारी जो पिछले 3 वर्षों से पदग्रहण किए हुए हैं या उससे अधिक समय से वो अपने पद पर पदस्थ है और किसी कार्य को अंजाम देने में सक्षम नहीं हो रहे हों या नहीं कर पाए हैं, उनको चाहिए कि पद को रिक्त करते हुए नई पीढी के लोगों को जो मोमिन कॉन्फ्रेंस के एजेण्डे को आगे बडा सकते हैं, उन्हें सौंप देना चाहिए।
यही नहीं जो लोग 3 वर्षों से पदग्रहण किए हों और अपने क्षेत्र/जिला आदि में मोमिन अंसार को आगे नहीं बडा पा रहे हों, ऐसी स्थिति में नई पीढी के युवाओं को मौका देना चाहिए। कोई भी पदाधिकारी 3 वर्ष से अधिक पद पर न रहे ऐसा विचार करना चाहिए।
2. राष्ट्रीय स्तर पर एवं प्रदेश स्तर पर एवं इसी प्रकार जिला स्तर पर मोमिन कॉन्फ्रेंस को चाहिए की विचार विमर्श समिति (Think tank) का गठन किया जावे जिसमें मोमिन समाज के दानिश्वर लोग हो जिनका संबंध समस्त सामाजिक, न्यायिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक आदि विषयों से उनका संबंध हो जिससे की वो अपनी राय दे सकें। ताकि अपने समाज की विभिन्न प्रकार की समस्याओं से निपटा जा सके।
3. हमारे मोमिन समाज, दलित, ओबीसी एवं अन्य समाज जो कि विभिन्न समस्याओं से जूझ रहे हैं उनकी समस्याओं का अध्ययन करने के पश्चात् उसका त्वरित निराकरण किया जाने का प्रयास करना चाहिए।
4. पिछले 4-5 सालों से मेरे द्वारा अपने स्तर पर यह प्रयास किया जा रहा है कि मोमिन अंसार का इतिहास क्या रहा है, मोमिन अंसार समाज से स्वतंत्रता सैनानियो, समाज सुधारक, राजनैतिक युगपुरूष या हमारे बीच के ऐसे व्यक्ति जिनका सन् 1857 से पूर्व एवं सन् 1857 से लेकर सन् 1900 एवं सन् 1900 से लेकर सन् 1947 तक एवं सन् 1947 से आज दिनांक तक उनका क्या योगदान रहा है ऐसे विशिष्ट व्यक्तियों के बारे में आने वाली पीढी को अवगत कराया जावे। समस्त जानकारी को किताब की शक्ल दी जावे जो आज दिनांक तक उपलब्ध नहीं है इस संबंध में उच्च प्राथमिकता देते हुए कार्रवाई करने की जरूरत है।
5. ऐसे समस्त पदाधिकारी जो पदों पर पदस्थ है वह और उनकी टीम अलगे 3 सालों में विभिन्न स्तरों पर क्या कार्रवाई करेगी वे अपने एजेण्डे की घोषणा करें एवं उसके बाद उसका पालन एवं क्रियान्वयन किया जाना सुनिश्चित करे।
जानकारी के मुताबिक न तो राज्य स्तर पर और न ही प्रदेश स्तर पर विधिवत कोई कार्यालय नहीं है और न ही किसी स्तर पर अपने समाज का सूचना केंद्र (Information Center) है जहां से सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा सके जो आज के युग में अत्यंत आवश्यक है एवं पिछडेपन का यह एक बहुत बडा कारण है। इस संबंध में पृथक से विस्तृत चर्चा की जा सकती है।
6. पिछले कई सालों से यद्पि मेरे द्वारा मोमिन अंसार कमेटी के युगपुरूष (Freedom Fighters) या अन्य व्यक्ति जिन्होंने राष्ट्र को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है हमारे युगपुरूषों का योगदान रहा है और आज इन युगपुरूषों के बारे में हमारे पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है जो इतिहास के पन्नों में खोकर रहा गया है इस विषय पर कार्रवाई करने की अत्यंत आवश्यकता है। इस कार्य को भी उच्च प्राथमिकता देना चाहिए।
7. चूंकि मोमिन अंसार कॉन्फ्रेंस के द्वारा विभिन्न स्तरों पर विचार विमर्श समिति (Think tank) का गठन नहीं किया गया है ऐसे में हमारे समाज का निचला तबका किस प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा है, उनसे निपटने के लिए हमारे पास कोई रणनीति एवं योजना नहीं है और न ही हम सब जानकारी के अभाव में विभिन्न स्तरों पर अवाज उठा पा रहे हैं और न ही रणनीति बना पा रहे हैं।
8. 12 वर्षों से अधिक हो चुके है, सच्चर कमीशन की रिपोर्ट, श्री रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट एवं श्री प्रोफेसर अमिताभ कुण्डु की रिपोर्ट की सिफारिशों को घोषणा किए हुए आज दिनांक तक क्रियान्वयन नहीं किया गया है और न ही इस ओर चाहे केंद्र की सरकार हो या प्रदेश की सरकार हो कोई भी पहल नहीं की गई है। इन समस्त रिर्पोटस की सिफारिशों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया है इन सब को लागू करने हेतु रणनीति बनाने की आवश्यकता है। इन समस्त रिपोर्ट की सिफारिशों की घोषणा से समस्त दलित मुस्लिम समाज, ओबीसी मुस्लिम समाज एवं विशेषकर मुस्लिम समाज के सबसे निचले तबके को 10 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त हो सकता है परंतु हमारे द्वारा इसे लागू कराने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं उपरोक्त समस्त रिर्पोटस के परिप्रेक्ष्य में आरक्षण की मांग करना चाहिए जो आज दिनांक तक नहीं किया गया है और न ही आज दिनांक तक कोई ठोस आवाज उठाई गई है।
9. सन् 1950 का राष्ट्रपति आदेश (Presidential Order) एवं धारा 341 (1) जो मजहबी भेदभाव मुसलमानों एवं क्रिश्चन्स के साथ बनाए रखने के लिए लागू किया गया है उसे समाप्त करने के लिए मोमिन कॉन्फ्रेंस द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं एवं ऐसा प्रतीत होता है कि या तो दलित मुस्लिम समाज को इसकी जानकारी नहीं है या दलित मुस्लिम समाज सो रहा है।
10. जानकारी के मुताबिक मोमिन अंसार समाज में जो बिखराव के कारण कई सारे Organizations, Association, Societies, Groups आदि बने हुए हैं और इसका कारण यह है कि हमारे समाज में कोई सही नैत्रित्व (Leadership) देने वाला नहीं है। एक बार नए सिरे से सभी Groups को एक प्लेटफार्म पर लाये जाने का प्रयास करना चाहिए और नही तो कम से कम एक Central Body राष्ट्रीय स्तर पर समिति का गठन कर जिसमे विभिन्न समितियां हों जो Central Body बनाई गई है उसके द्वारा तालमेल स्थापित कराते हुए सर्वमान्य एजेण्डे को लागू किया जा सके जिससे गरीब मुस्लिमों को इससे ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंच सके और यही उपाय है, क्योंकि समस्त मुस्लिम Organizations, Association, Societies को एक प्लेटफार्म पर लाना टेढी खीर है। मुस्लिम एक प्लेटफार्म आने से पहले ही बिखर जाता है और मुस्लिम दलित समाज में यह ज्यादा पाया जाता है।
11. वर्तमान समय में मुसलमानों के समक्ष विशेषकर दलित एवं ओबीसी मुसलमानों के साथ सुरक्षा की समस्या बड गई है। पिछले कई सालों से गरीब मुसलमानों में असुरक्षा की भावना बहुत तेजी से पनपी है। यह अपने आप में चिन्ता का विषय एवं विचारणीय प्रश्न है इसपर कार्रवाई की जाना अत्यंत आवश्यक है और यह तभी संभव हो सकेगा जब हमारे आने वाली पीढी Police, Army, Administration Services, Central/State में ज्यादा से ज्यादा भर्ती (Recruit) होंगे। इसके लिए बिरादरी के मुखिया लोगों को प्लान (रणनीति) बनानी होगी जो बगैर विचार विमर्श समिति (Think tank) बनाए संभव नहीं है।
12. राष्ट्रीय सरकार एवं प्रदेश सरकार की जो भी नीतियां है उससे गरीब समाज के लोग लाभ प्राप्त कर सकते हैं लेकिन यह जब मुमकिन है, जब हमारे समाज को शासन के द्वारा बनाई गई विकास नीतियों के बारे में जानकारी हो, इसके लिए आवश्यक है कि हर स्तर पर सूचना केंद्र स्थापित किया जाना चाहिए इस पर भी हमे विचार करना चाहिए।
यहां पर सूचना केंद्र (Information Center) से मुराद है कि एक जगह पर होने वाली अन्याय/जुल्म/ज्यादती आदि की जानकारी यदि प्राप्त होती है तो एकजुट होकर इस जुल्म ज्यादती से लडाई लडी जा सकती है और इसी कारण प्रत्येक प्रदेश में मोमिन सूचना केंद्र की स्थापना करना अत्यंत आवश्यक है।
13. हम सब के समक्ष जनप्रतिनिधि M.P., M.L.A., M.L.C, जिला पंचायत अध्यक्ष, पंच/सरपंच आदि की समस्या बनी हुई है। हमें इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि किन कारणों से हमारे समाज का शासन, प्रशासन में किसी भी स्तर पर प्रतिनिधित्व का अभाव है क्या कारण है कि हमारे बीच से M.P., M.L.A. नहीं बन पा रहे हैं, यह भी बहुत बडा चिन्ता का विषय है एवं विचारणीय प्रश्न है।
इस संबंध में हम सब को एकजुट होने की आवश्यकता है, हम सब को अपनी ताकत प्रत्येक सियासी पार्टी को दिखानी होगी, हमारी बिरादरी के लोग किसी भी समाज/सियासी पार्टी के साथ हो परंतु हम सब का एजेण्डा एक हो एवं एक होना चाहिए। हमारी बिरादरी के लोग, दलित मुस्लिम, ओबीसी मुस्लिम कैसे आगे बढे हम सब को एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए।
14. हमारे समाज के लोगों को तालीमे निस्वॉ एंव अपनी बहु-बेटी, बहनों को कैसे तालीम के द्वारा मजबूती प्रदान की जावे इसके लिए प्रत्येक स्तर पर एक विशेष सेल (समिति) का गठन करना चाहिए और अपने आधी जमाअत को जो बहुत कमजोर है हर तरह से उनको मजबूती प्रदान करना चाहिए साथ ही जो हमारे बीच में कूरीति/बुराई फैली हुई है चाहे वो जात-पात, भेदभाव, दहेज आदि का हो उसे रोकने के लिए लगातार प्रयास करना चाहिए।
15. समूचे मुल्क में लगातार किसी न किसी प्रकार के दंगे-फसाद, खून-खराबा होता आ रहा है, और इसमें लगातार बढौत्री हो रही है इससे सबसे अधिक मुसलमानों का सबसे निचला तबका, गरीब जनता इससे पीडित है, प्रभावित है। इस ओर हमें विशेष ध्यान देते हुए सौहाद्र (Communal Harmony) एवं (Cultural Issues) पर कार्यवाही करने की जरूरत है।
इस प्रकार हमारे कई सारी अन्य समस्याएं हैं जिनका उल्लेख मेरे द्वारा यहां करना संभव नहीं है जैसे शैक्षणिक पिछडापन, आर्थिक पिछडापन हमारी बिरादरी के मानवअधिकारों का हनन, शासन द्वारा की जाने वाली ज्यादतियां आदि शामिल हैं। यही नहीं हमारे मजहबी स्थानों, कब्रिस्तानों, वक्फ संपत्ति आदि पर किसी न किसी प्रकार से शासन एवं अन्य का नाजायज कब्जा है, इन तमाम विषय/मुद्दों पर विचारविमर्श करने की आवश्यकता है। और यह तब ही संभव हो पाएगा जब हम सब एक होकर एक छत के नीचे हों, और आने वाली नई नस्लों के लागों को मार्गदर्शन देते हुए क्यादत करने का मौका देंगे और अपने बीच के बिखराव को खत्म करना होगा। बिरादरी के लोग एक साथ बैठकर, सर जोडकर, मनन चिंतन, विचारविमर्श समस्त समस्याओं पर करें और एक ठोस नीति बनाते हुए समस्याओं को दूर करने की पहल करें और अपनी आने वाली पीढी के समक्ष नजीर बनें।
एम.डब्ल्यू. अंसारी
आई.पी.एस. (रिटायर्ड)
mwansari1984@gmail.com
नोट :- यह मेरी व्यक्तिगत राय है। आप सब से इस संबंध में ठोस सुझाव यदि प्राप्त होते हैं तो भविष्य में आने वाली पीढी के लिए लाभदायक साबित होगा।
मोमिन तहरीक, मोमिन स्वतंत्रता सैनानी, मोमिन अंसार समाज सुधारक, मोमिन अंसार उलमा ए इक्राम, मोमिन अंसार तहरीक के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है इसके बावजूद में अपनी बात यहां पर रख रहा हूं। जहां तक मोमिन अंसार तहरीक की बात है जो सन् 1818 या 1820 में शायद बंगाल वर्तमान समय में बांग्लादेश के ढाका, मुर्शीदाबाद आदि में वहां के बुनकर विशेषकर जो कपडा उद्योग से जुडे हुए थे, अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर दी थी और यही कारण है कि 1835 में जनाब सिबगतुल्ला अंसारी एवं उनके साथियों को अंग्रेजों ने फांसी पर चढा दिया था। छोटानागपुर/संथालपरगना (वर्तमान समय झारखंड) में शहीद ए आजम, देश रत्न जनाब शेख भिखारी (02 अक्टूबर 1811 - 08 जनवरी 1858) ने भी अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने की वजह से फांसी दे दी गई। इसी प्रकार जनाब हाजी शरियतुल्ला अंसारी (1781-1840) एवं उनके पुत्र जनाब मो. मोहसिन उर्फ दादुमियां (1819-1863), जनाब डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी, जनाब शौकतुल्ला अंसारी एवं आजादी के तहरीक में, जनाब मौलाना रशीद अहमद गंगोही, जनाब मौलाना अब्दुल हक अंसारी, जनाब मौलाना इमामुद्दीन आदि ने जंगे आजादी में बढ-चढकर भाग लिया और मुल्क को आजादी दिलाई एवं कौम की रहनुमाई की।
इसके अलावा बहुत सारे मोमिन अंसार बिरादरी से संबंध रखने वाले स्वतंत्रता सैनानियों का अता-पता एवं कोई नामलेवा नहीं है ओर न ही इस विषयवस्तु पर कोई संगठित तौर पर, विधिवत रिसर्च कर (तहकीकी कार्रवाई कर) ऐसे तमाम मोमिन अंसारी के सपूतों का पता लगाकर उनको सम्मान देना चाहिए। जो आज दिनांक तक कोई भी इस बावत मान-सम्मान हेतु, ब्यादगार हेतु कोई कार्रवाई की जाना नहीं पाई जा रही है। कभी कभी अस्थानीय परिप्रेक्ष्य में जनाब अब्दुल कययूम अंसारी साहब की जन्मदिवस मनाने की सूचना गाहे-बगाहे मिलती आ रही है। वह भी प्रोग्राम के तौर तरीके को देखने से ऐसा प्रतीत होता है और पता चलता है कि समस्त प्रोग्राम राजनीतिक लाभ लेने हेतु अथवा अपने आप को खुदनुमाई (प्रोत्साहन) किए जाना पता चलता है। यही नहीं इनके अलावा अनेकों स्वतंत्रता संग्राम सैनानी, सामाजिक आंदोलन से जुडे हुए, समाजसुधारक आदि जिन्होंने अंग्रेजों के जुल्म ज्यादती के खिलाफ अपने समाज में प्रचलित कूरितियों के खिलाफ लगातार आवाजें बुलंद की हैं और जिनका कि राष्ट्र निर्माण में एवं समाज के लिए उल्लेखनीय योगदान रहा है जिनके कुछ नाम निम्नानुसार हैं -
1. जनाब पीर मो. मुनीस
2. जनाब मो. अब्दुल मजीद
3. जनाब शेख मो. जहीर उद्दीन
4. जनाब शेख मुर्तजा हसन
5. जनाब मो. निजामुद्दीन एडवोकेट
6. जनाब शफीकुल्ला अंसारी
7. जनाब मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी
8. जनाब बख्त मिया उर्फ बत्तख मियां अंसारी
को इस तरह की कॉन्फ्रेंस/प्रोग्रामों में उनपर रोशनी डालते हुए उन्हें याद करना चाहिए जो इनके नाम फोटोज, पोस्टर्स, बैनर्स, फ्लैक्स आदि पर न के बराबर इस प्रोग्राम में देखने को मिले, बल्कि ऐसा देखने में आया कि अस्थानीय मोमिन कांफ्रेंस के पदाधिकारियों ने अपना ही प्रचार-प्रसार, खुदनुमाइश, इनके फोटो के साथ अपने फोटो लगाकर किया जाना पाया गया। इस प्रकार इनकी शख्सियत दब कर (गौड) रह गई है, इस ओर जितना ध्यान देना चाहिए था, उतना ध्यान नहीं दिया गया।
प्रोग्राम/कॉन्फ्रेंस स्थल पर जो भी पोस्टर्स अथवा बैनर्स लगे थे ऐसा लग रहा था कि व्यक्ति विशेष की खुदनुमाइश और किसी न किसी प्रकार का अपने आप को प्रोत्साहन करने की होड लगी हो और कोई भी व्यक्ति इस तरह के आयोजन से सहज ही अंदाजा लगा सकता है।
यह हमारी मोमिन तहरीक सन् 1900 से 1906 के बीच में कई नामों से कई क्षेत्रों में सरग्रम हो चुकी थी और जंगे आजादी से लेकर आजदी तहरीक में बढचढ कर भाग ले रही थी और मुल्क को आजाद करने में बहुत बडा रोल अदा किया। सन् 1906 में मुस्लिम लीग बनने के बाद इनकी कार्रवाई मुल्क को विभाजन से बचाने के लिए हर जगह जगजाहिर और नुमाया हो चुकी थी।
जैसा की ऊपर जिक्र किया जा चुका है कि मोमिन तहरीक, बुनकर, मोमिन अंसार बिरादरी जो अपने कारनामों (व्यवसाय) के कारण जानी जाती थी भारत के कई क्षेत्रों में काम कर रही थी और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्षरथ थी और पहली आजादी की लडाई 1857 में हर स्तर पर, पहली आजादी की लडाई में बढचढ कर भाग लिया।
यही कारण था कि सर सैयद अहमद खान ने अपनी किताब ''अस्बाब ए बगावते हिंद'' में 1857 की पहली आजादी की लडाई को विद्रोह करार देते हुए पूरी जिम्मेदारी अंसार बिरादरी पर ''जुलाहों के ताने बाने ढीले हो गए थे'' कहकर मढ दिया था। आज अंसारी बिरादरी के कितने वीर सपूतों को स्वतंत्रता संग्राम सैनानी के तौर पर जाना जाता है, और इतिहास के पन्नों में जगह मिली है यह एक विचारणीय प्रश्न है। इस पर मोमिन अंसार बिरादरी को उच्च प्राथमिकता देते हुए कार्रवाई करने की जरूरत है जो आज दिनांक तक कोई भी तहकीकी कार्रवाई नहीं की गई जो बहुत ही दुख की बात है एवं खेद का विषय है।
इतिहास इस बात का गवाह है कि मुस्लिम लीग सन् 1906 में अस्तित्व में आने के बाद, जो पाकिस्तान बनाने के पक्ष में थी वही मोमिन अंसार बिरादरी के समस्त एसोसिएशन/ओरगानाइजेशन दो मुल्की नजरिए के लगातार खिलाफ रही है एवं मोमिन अंसार बिरादरी एवं अन्य मुस्लिम दलित समाज कहीं भी कभी भी इतिहास के पन्नों में पाकिस्तान बनाने का पक्ष नहीं मिलता है और इसका सबूत सन् 1906 से लगातार जो कि मोमिन अंसार के मजदूर समाज के लोग थे उन्होंने विभाजन के खिलाफ जो कार्रवाई की ऐसी कार्रवाई किसी और संगठन द्वारा नहीं की गई। अब ऐसी स्थिति में ऑल इण्डिया मोमिन कॉन्फ्रेंस और इसके साथ-साथ स्टेट मोमिन कॉन्फ्रेंस के पदाधिकारियों को चाहिए की प्रत्येक स्टेट में, बदलते हुए प्रदेश में अपने नुमाया कार्रवाई करे और अपनी बिरादरी को ही नहीं बल्कि समस्त दलित मुस्लिम समाज दबे-कुचले लोगों की, समस्त मुस्लिम समाज की रहनुमाई करे।
समस्त कॉन्फ्रेंस/सम्मेलनों की कार्रवाई को देखते हुए ऐसा महसूस हो रहा था कि मोमिन अंसारी बिरादरी एवं दलित मुस्लिम समाज के समक्ष कोई ठोस एजेण्डा/ भविष्य के लिए कोई एक्शन प्लान नहीं है ऐसी सूरते हाल में राष्ट्रीय मोमिन कॉन्फ्रेंस एवं मोमिन अंसार बिरादरी के दानिश्वर समस्त आवश्यक बिन्दुओं/मुद्दों पर कार्रवाई करने की सोच/प्लान बना सकते हैं, इसके लिए आवश्यक है कि अंसार बिरादरी के पदाधिकारी एवं दानिश्वरों में आपस में तालमेल, सहमति हो।
1. ऐसे समस्त ऑल इंडिया मोमिन कॉन्फ्रेंस के पदाधिकारी एवं स्टेट मोमिन कॉन्फ्रेंस के पदाधिकारी जो पिछले 3 वर्षों से पदग्रहण किए हुए हैं या उससे अधिक समय से वो अपने पद पर पदस्थ है और किसी कार्य को अंजाम देने में सक्षम नहीं हो रहे हों या नहीं कर पाए हैं, उनको चाहिए कि पद को रिक्त करते हुए नई पीढी के लोगों को जो मोमिन कॉन्फ्रेंस के एजेण्डे को आगे बडा सकते हैं, उन्हें सौंप देना चाहिए।
यही नहीं जो लोग 3 वर्षों से पदग्रहण किए हों और अपने क्षेत्र/जिला आदि में मोमिन अंसार को आगे नहीं बडा पा रहे हों, ऐसी स्थिति में नई पीढी के युवाओं को मौका देना चाहिए। कोई भी पदाधिकारी 3 वर्ष से अधिक पद पर न रहे ऐसा विचार करना चाहिए।
2. राष्ट्रीय स्तर पर एवं प्रदेश स्तर पर एवं इसी प्रकार जिला स्तर पर मोमिन कॉन्फ्रेंस को चाहिए की विचार विमर्श समिति (Think tank) का गठन किया जावे जिसमें मोमिन समाज के दानिश्वर लोग हो जिनका संबंध समस्त सामाजिक, न्यायिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक आदि विषयों से उनका संबंध हो जिससे की वो अपनी राय दे सकें। ताकि अपने समाज की विभिन्न प्रकार की समस्याओं से निपटा जा सके।
3. हमारे मोमिन समाज, दलित, ओबीसी एवं अन्य समाज जो कि विभिन्न समस्याओं से जूझ रहे हैं उनकी समस्याओं का अध्ययन करने के पश्चात् उसका त्वरित निराकरण किया जाने का प्रयास करना चाहिए।
4. पिछले 4-5 सालों से मेरे द्वारा अपने स्तर पर यह प्रयास किया जा रहा है कि मोमिन अंसार का इतिहास क्या रहा है, मोमिन अंसार समाज से स्वतंत्रता सैनानियो, समाज सुधारक, राजनैतिक युगपुरूष या हमारे बीच के ऐसे व्यक्ति जिनका सन् 1857 से पूर्व एवं सन् 1857 से लेकर सन् 1900 एवं सन् 1900 से लेकर सन् 1947 तक एवं सन् 1947 से आज दिनांक तक उनका क्या योगदान रहा है ऐसे विशिष्ट व्यक्तियों के बारे में आने वाली पीढी को अवगत कराया जावे। समस्त जानकारी को किताब की शक्ल दी जावे जो आज दिनांक तक उपलब्ध नहीं है इस संबंध में उच्च प्राथमिकता देते हुए कार्रवाई करने की जरूरत है।
5. ऐसे समस्त पदाधिकारी जो पदों पर पदस्थ है वह और उनकी टीम अलगे 3 सालों में विभिन्न स्तरों पर क्या कार्रवाई करेगी वे अपने एजेण्डे की घोषणा करें एवं उसके बाद उसका पालन एवं क्रियान्वयन किया जाना सुनिश्चित करे।
जानकारी के मुताबिक न तो राज्य स्तर पर और न ही प्रदेश स्तर पर विधिवत कोई कार्यालय नहीं है और न ही किसी स्तर पर अपने समाज का सूचना केंद्र (Information Center) है जहां से सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा सके जो आज के युग में अत्यंत आवश्यक है एवं पिछडेपन का यह एक बहुत बडा कारण है। इस संबंध में पृथक से विस्तृत चर्चा की जा सकती है।
6. पिछले कई सालों से यद्पि मेरे द्वारा मोमिन अंसार कमेटी के युगपुरूष (Freedom Fighters) या अन्य व्यक्ति जिन्होंने राष्ट्र को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है हमारे युगपुरूषों का योगदान रहा है और आज इन युगपुरूषों के बारे में हमारे पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है जो इतिहास के पन्नों में खोकर रहा गया है इस विषय पर कार्रवाई करने की अत्यंत आवश्यकता है। इस कार्य को भी उच्च प्राथमिकता देना चाहिए।
7. चूंकि मोमिन अंसार कॉन्फ्रेंस के द्वारा विभिन्न स्तरों पर विचार विमर्श समिति (Think tank) का गठन नहीं किया गया है ऐसे में हमारे समाज का निचला तबका किस प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा है, उनसे निपटने के लिए हमारे पास कोई रणनीति एवं योजना नहीं है और न ही हम सब जानकारी के अभाव में विभिन्न स्तरों पर अवाज उठा पा रहे हैं और न ही रणनीति बना पा रहे हैं।
8. 12 वर्षों से अधिक हो चुके है, सच्चर कमीशन की रिपोर्ट, श्री रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट एवं श्री प्रोफेसर अमिताभ कुण्डु की रिपोर्ट की सिफारिशों को घोषणा किए हुए आज दिनांक तक क्रियान्वयन नहीं किया गया है और न ही इस ओर चाहे केंद्र की सरकार हो या प्रदेश की सरकार हो कोई भी पहल नहीं की गई है। इन समस्त रिर्पोटस की सिफारिशों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया है इन सब को लागू करने हेतु रणनीति बनाने की आवश्यकता है। इन समस्त रिपोर्ट की सिफारिशों की घोषणा से समस्त दलित मुस्लिम समाज, ओबीसी मुस्लिम समाज एवं विशेषकर मुस्लिम समाज के सबसे निचले तबके को 10 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त हो सकता है परंतु हमारे द्वारा इसे लागू कराने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं उपरोक्त समस्त रिर्पोटस के परिप्रेक्ष्य में आरक्षण की मांग करना चाहिए जो आज दिनांक तक नहीं किया गया है और न ही आज दिनांक तक कोई ठोस आवाज उठाई गई है।
9. सन् 1950 का राष्ट्रपति आदेश (Presidential Order) एवं धारा 341 (1) जो मजहबी भेदभाव मुसलमानों एवं क्रिश्चन्स के साथ बनाए रखने के लिए लागू किया गया है उसे समाप्त करने के लिए मोमिन कॉन्फ्रेंस द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं एवं ऐसा प्रतीत होता है कि या तो दलित मुस्लिम समाज को इसकी जानकारी नहीं है या दलित मुस्लिम समाज सो रहा है।
10. जानकारी के मुताबिक मोमिन अंसार समाज में जो बिखराव के कारण कई सारे Organizations, Association, Societies, Groups आदि बने हुए हैं और इसका कारण यह है कि हमारे समाज में कोई सही नैत्रित्व (Leadership) देने वाला नहीं है। एक बार नए सिरे से सभी Groups को एक प्लेटफार्म पर लाये जाने का प्रयास करना चाहिए और नही तो कम से कम एक Central Body राष्ट्रीय स्तर पर समिति का गठन कर जिसमे विभिन्न समितियां हों जो Central Body बनाई गई है उसके द्वारा तालमेल स्थापित कराते हुए सर्वमान्य एजेण्डे को लागू किया जा सके जिससे गरीब मुस्लिमों को इससे ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंच सके और यही उपाय है, क्योंकि समस्त मुस्लिम Organizations, Association, Societies को एक प्लेटफार्म पर लाना टेढी खीर है। मुस्लिम एक प्लेटफार्म आने से पहले ही बिखर जाता है और मुस्लिम दलित समाज में यह ज्यादा पाया जाता है।
11. वर्तमान समय में मुसलमानों के समक्ष विशेषकर दलित एवं ओबीसी मुसलमानों के साथ सुरक्षा की समस्या बड गई है। पिछले कई सालों से गरीब मुसलमानों में असुरक्षा की भावना बहुत तेजी से पनपी है। यह अपने आप में चिन्ता का विषय एवं विचारणीय प्रश्न है इसपर कार्रवाई की जाना अत्यंत आवश्यक है और यह तभी संभव हो सकेगा जब हमारे आने वाली पीढी Police, Army, Administration Services, Central/State में ज्यादा से ज्यादा भर्ती (Recruit) होंगे। इसके लिए बिरादरी के मुखिया लोगों को प्लान (रणनीति) बनानी होगी जो बगैर विचार विमर्श समिति (Think tank) बनाए संभव नहीं है।
12. राष्ट्रीय सरकार एवं प्रदेश सरकार की जो भी नीतियां है उससे गरीब समाज के लोग लाभ प्राप्त कर सकते हैं लेकिन यह जब मुमकिन है, जब हमारे समाज को शासन के द्वारा बनाई गई विकास नीतियों के बारे में जानकारी हो, इसके लिए आवश्यक है कि हर स्तर पर सूचना केंद्र स्थापित किया जाना चाहिए इस पर भी हमे विचार करना चाहिए।
यहां पर सूचना केंद्र (Information Center) से मुराद है कि एक जगह पर होने वाली अन्याय/जुल्म/ज्यादती आदि की जानकारी यदि प्राप्त होती है तो एकजुट होकर इस जुल्म ज्यादती से लडाई लडी जा सकती है और इसी कारण प्रत्येक प्रदेश में मोमिन सूचना केंद्र की स्थापना करना अत्यंत आवश्यक है।
13. हम सब के समक्ष जनप्रतिनिधि M.P., M.L.A., M.L.C, जिला पंचायत अध्यक्ष, पंच/सरपंच आदि की समस्या बनी हुई है। हमें इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि किन कारणों से हमारे समाज का शासन, प्रशासन में किसी भी स्तर पर प्रतिनिधित्व का अभाव है क्या कारण है कि हमारे बीच से M.P., M.L.A. नहीं बन पा रहे हैं, यह भी बहुत बडा चिन्ता का विषय है एवं विचारणीय प्रश्न है।
इस संबंध में हम सब को एकजुट होने की आवश्यकता है, हम सब को अपनी ताकत प्रत्येक सियासी पार्टी को दिखानी होगी, हमारी बिरादरी के लोग किसी भी समाज/सियासी पार्टी के साथ हो परंतु हम सब का एजेण्डा एक हो एवं एक होना चाहिए। हमारी बिरादरी के लोग, दलित मुस्लिम, ओबीसी मुस्लिम कैसे आगे बढे हम सब को एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए।
14. हमारे समाज के लोगों को तालीमे निस्वॉ एंव अपनी बहु-बेटी, बहनों को कैसे तालीम के द्वारा मजबूती प्रदान की जावे इसके लिए प्रत्येक स्तर पर एक विशेष सेल (समिति) का गठन करना चाहिए और अपने आधी जमाअत को जो बहुत कमजोर है हर तरह से उनको मजबूती प्रदान करना चाहिए साथ ही जो हमारे बीच में कूरीति/बुराई फैली हुई है चाहे वो जात-पात, भेदभाव, दहेज आदि का हो उसे रोकने के लिए लगातार प्रयास करना चाहिए।
15. समूचे मुल्क में लगातार किसी न किसी प्रकार के दंगे-फसाद, खून-खराबा होता आ रहा है, और इसमें लगातार बढौत्री हो रही है इससे सबसे अधिक मुसलमानों का सबसे निचला तबका, गरीब जनता इससे पीडित है, प्रभावित है। इस ओर हमें विशेष ध्यान देते हुए सौहाद्र (Communal Harmony) एवं (Cultural Issues) पर कार्यवाही करने की जरूरत है।
इस प्रकार हमारे कई सारी अन्य समस्याएं हैं जिनका उल्लेख मेरे द्वारा यहां करना संभव नहीं है जैसे शैक्षणिक पिछडापन, आर्थिक पिछडापन हमारी बिरादरी के मानवअधिकारों का हनन, शासन द्वारा की जाने वाली ज्यादतियां आदि शामिल हैं। यही नहीं हमारे मजहबी स्थानों, कब्रिस्तानों, वक्फ संपत्ति आदि पर किसी न किसी प्रकार से शासन एवं अन्य का नाजायज कब्जा है, इन तमाम विषय/मुद्दों पर विचारविमर्श करने की आवश्यकता है। और यह तब ही संभव हो पाएगा जब हम सब एक होकर एक छत के नीचे हों, और आने वाली नई नस्लों के लागों को मार्गदर्शन देते हुए क्यादत करने का मौका देंगे और अपने बीच के बिखराव को खत्म करना होगा। बिरादरी के लोग एक साथ बैठकर, सर जोडकर, मनन चिंतन, विचारविमर्श समस्त समस्याओं पर करें और एक ठोस नीति बनाते हुए समस्याओं को दूर करने की पहल करें और अपनी आने वाली पीढी के समक्ष नजीर बनें।
एम.डब्ल्यू. अंसारी
आई.पी.एस. (रिटायर्ड)
mwansari1984@gmail.com
नोट :- यह मेरी व्यक्तिगत राय है। आप सब से इस संबंध में ठोस सुझाव यदि प्राप्त होते हैं तो भविष्य में आने वाली पीढी के लिए लाभदायक साबित होगा।
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